दामन Poetry (page 19)

रात के साए

राशिद आज़र

अज़्म-ए-बुलंद जो दिल-ए-बेबाक में रहा

राशिद आज़र

अपनी क़िस्मत के हुए सारे सितारे पत्थर

रशीदुज़्ज़फ़र

हैं बे-नियाज़-ए-ख़ल्क़ तिरा दर है और हम

रशीद रामपुरी

अल्लाह रे हौसला मिरे क़ल्ब-ए-दो-नीम का

रशीद रामपुरी

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

रशीद क़ैसरानी

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था

रशीद क़ैसरानी

गुम्बद-ए-ज़ात में अब कोई सदा दूँ तो चलूँ

रशीद क़ैसरानी

नहीं था ज़ख़्म तो आँसू कोई सजा लेता

रशीद निसार

सिए जाते हैं कफ़न आप के दीवानों के

रशीद लखनवी

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

न छोड़ा दिल-ए-ख़स्ता-जाँ चलते चलते

रशीद लखनवी

है अंधेरा तो समझता हूँ शब-ए-गेसू है

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

अगर दिला ग़म-ए-गेसू-ए-यार बढ़ जाता

रशीद लखनवी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हिम्मत-ए-आली का इतना तो ज़ियाँ होना ही था

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

नीची नज़रों से न देखो सर-ए-महशर देखो

रसा रामपुरी

शाम से पहले घर गए होते

रसा चुग़ताई

हुस्न-ए-बज़्म-ए-मिसाल में क्या है

रसा चुग़ताई

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

है समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

वो रह-ओ-रस्म न वो रब्त-ए-निहाँ बाक़ी है

राम कृष्ण मुज़्तर

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

दोस्तो क्या है तकल्लुफ़ मुझे सर देने में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़िंदगी तू ने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं

राजेश रेड्डी

ख़ुद-कुशी

राजा मेहदी अली ख़ाँ

किसी का जिस्म हुआ जान-ओ-दिल किसी के हुए

रईस सिद्दीक़ी

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

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