दामन Poetry (page 17)

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर

सबा अकबराबादी

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सबा अकबराबादी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

जो आ के रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है

सबा अफ़ग़ानी

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है

सबा अफ़ग़ानी

हमेशा ख़ून-ए-दिल रोया हूँ मैं लेकिन सलीक़े से

साइल देहलवी

वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं

साइल देहलवी

उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को

साइल देहलवी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना

सादुल्लाह शाह

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

एस ए मेहदी

हवा-ए-जिंदगी भी कूचा-ए-क़ातिल से आती है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

एक रोते हुए आदमी को देख कर

रियाज़ लतीफ़

ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे

रियाज़ ख़ैराबादी

वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो

रियाज़ ख़ैराबादी

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे

रियाज़ ख़ैराबादी

नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग

रियाज़ ख़ैराबादी

न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

आरज़ू भी तो कर नहीं आती

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

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