दामन Poetry (page 18)

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में

रिफ़अत सेठी

घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ

रिफ़अत सरोश

उस ने इक दिन भी न पूछा बोल आख़िर किस लिए

रियाज़ मजीद

मकान-ए-दिल से जो उठता था वो धुआँ भी गया

रियाज़ मजीद

तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है

रज़िया हलीम जंग

दहका पड़ा है जामा-ए-गुल यार ख़ैर हो

रज़ी रज़ीउद्दीन

ख़ुश्क दामन पे बरसने नहीं देती मुझ को

रज़ा मौरान्वी

वो आँसू जो हँस हँस के हम ने पिए हैं

रज़ा लखनवी

ये बात तिरी चश्म-ए-फुसूँ-कार ही समझे

रज़ा जौनपुरी

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

रज़ा जौनपुरी

क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला

रज़ा जौनपुरी

कैफ़ नसीब अब कहाँ ग़ुंचों के भी जमाल में

रज़ा जौनपुरी

ये किस मक़ाम पे ठहरा है कारवान-ए-वफ़ा

रज़ा हमदानी

हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए

रज़ा हमदानी

ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात

रज़ा अज़ीमाबादी

हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़

रज़ा अज़ीमाबादी

रंग उस महफ़िल-ए-तमकीं में जमाया न गया

रविश सिद्दीक़ी

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए

रविश सिद्दीक़ी

हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर

रविश सिद्दीक़ी

हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे

रौनक़ टोंकवी

नियाज़-आगीं है और नाज़-आफ़रीं भी

रौनक़ दकनी

चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह

रऊफ़ यासीन जलाली

गिरफ़्तारी के सब हरबे शिकारी ले के निकला है

रऊफ़ ख़ैर

रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया

राशिद तराज़

आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ

राशिद हामिदी

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