दामन Poetry (page 1)

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

सलाम लोगो

हबीब जालिब

गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

कहानी ओढ़ ली मैं ने

फ़ाख़िरा बतूल

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

असातीरी नज़्म

जवाज़ जाफ़री

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

हिज्र

हारिस ख़लीक़

लोग सब क़ीमती पोशाक पहन कर पहुँचे

लहु में उतरता हुआ मौसम

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

दाग़-ए-दिल दाग़-ए-तमन्ना मिल गया

सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

रहरव-ए-राह-ए-ख़राबात-ए-चमन

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाए

ज़ुबैर रिज़वी

मुसालहत

ज़ुबैर रिज़वी

ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया

ज़ुबैर फ़ारूक़

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

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