दामन Poetry (page 40)

फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं

अहमद ज़फ़र

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

दियों से वा'दे वो कर रही थी अजीब रुत थी

अहमद सज्जाद बाबर

लम्हा लम्हा शुमार कौन करे

अहमद राही

लरज़ते साए

अहमद नदीम क़ासमी

टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया

अहमद मुश्ताक़

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी

अहमद मुश्ताक़

छट गया अब्र शफ़क़ खुल गई तारे निकले

अहमद मुश्ताक़

अश्क दामन में भरे ख़्वाब कमर पर रक्खा

अहमद मुश्ताक़

वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'

अहमद ख़याल

कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें

अहमद ख़याल

जुनूँ को रख़्त किया ख़ाक को लिबादा किया

अहमद ख़याल

अगर कट-फट गया था मेरा दामन

अहमद कमाल परवाज़ी

तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं

अहमद कमाल परवाज़ी

अमल बर-वक़्त होना चाहिए था

अहमद कमाल परवाज़ी

तसलसुल

अहमद फ़राज़

हमदर्द

अहमद फ़राज़

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

अहमद फ़राज़

सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना

अहमद फ़राज़

रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है

अहमद फ़राज़

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

अहमद फ़राज़

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

अहमद फ़राज़

ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की

आग़ाज़ बरनी

वो नज़र मेहरबाँ अगर होती

आग़ाज़ बरनी

गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

पुर-नूर जिस के हुस्न से मदफ़न था कौन था

आग़ा हज्जू शरफ़

परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

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