वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'
सो मैं ने दामन-ए-दिल और कुछ कुशादा किया
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क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे
दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया
किसी दरवेश के हुजरे से अभी आया हूँ
हर एक रंग धनक की मिसाल ऐसा था
ये तअल्लुक़ तिरी पहचान बना सकता था
सुकूत तोड़ने का एहतिमाम करना चाहिए
फ़लक के रंग ज़मीं पर उतारता हुआ मैं
दिल किसी बज़्म में जाते ही मचलता है 'ख़याल'
तुम्हारी जीत में पिन्हाँ है मेरी जीत कहीं
ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे