किसी दरवेश के हुजरे से अभी आया हूँ
सो तिरे हुक्म की तामील नहीं करनी मुझे
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वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'
हर एक रंग धनक की मिसाल ऐसा था
उन को में कर्बला के महीने में लाऊँगा
दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है
क़यामत से क़यामत से गुज़ारे जा रहे थे
दश्त ओ जुनूँ का सिलसिला मेरे लहू में आ गया
जो तिरे ग़म की गिरानी से निकल सकता है
दिल किसी बज़्म में जाते ही मचलता है 'ख़याल'
कल रात इक अजीब पहेली हुई हवा
कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर
दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया
ग़ुबार अब्र बन गया कमाल कर दिया गया