कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर
किसी के हिज्र में रो रो के भर गया था मैं
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ऐ तअ'स्सुब ज़दा दुनिया तिरे किरदार पे ख़ाक
दिल किसी बज़्म में जाते ही मचलता है 'ख़याल'
वो दे रहा था तलब से सिवा सभी को 'ख़याल'
वो ज़हर है फ़ज़ाओं में कि आदमी की बात क्या
हवा के हाथ पे छाले हैं आज तक मौजूद
ग़ुबार अब्र बन गया कमाल कर दिया गया
दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है
कोई हैरत है न इस बात का रोना है हमें
वो सर उठाए यहाँ से पलट गया 'अहमद'
हर एक रंग धनक की मिसाल ऐसा था
ये तअल्लुक़ तिरी पहचान बना सकता था
बस चंद लम्हे पेश-तर वो पाँव धो के पल्टा है