महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक
तिरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या
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जैसी होनी हो वो रफ़्तार नहीं भी होती
दश्त में वादी-ए-शादाब को छू कर आया
मिरे अंदर रवानी ख़त्म होती जा रही है
ज़िंदगी ख़ौफ़ से तश्कील नहीं करनी मुझे
फ़लक के रंग ज़मीं पर उतारता हुआ मैं
मैं था सदियों के सफ़र में 'अहमद'
दिल किसी बज़्म में जाते ही मचलता है 'ख़याल'
तुम्हारी जीत में पिन्हाँ है मेरी जीत कहीं
हवा के हाथ पे छाले हैं आज तक मौजूद
किसी दरवेश के हुजरे से अभी आया हूँ