अगर कट-फट गया था मेरा दामन
तुम्हें सीना पिरोना चाहिए था
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जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
मैं ने इस शहर में वो ठोकरें खाई हैं कि अब
तुम मेरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
आग तो चारों ही जानिब थी पर अच्छा ये है
मिरी आदत मुझे पागल नहीं होने देती
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में