एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
ऐसे मौक़े पे निशाना भी ग़लत लगता है
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(885) Peoples Rate This
मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब
ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है
अगर कट-फट गया था मेरा दामन
कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं