मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
तू झूट बोल के आँसू निकाल लेता है
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कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
ख़ुदाया यूँ भी हो कि उस के हाथों क़त्ल हो जाऊँ
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया
इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं
तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं
जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ