इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं
अपनी ही चीज़ उठाते हुए डर जाता हूँ
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(845) Peoples Rate This
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में
ख़ुदाया यूँ भी हो कि उस के हाथों क़त्ल हो जाऊँ
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था
कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ
मैं ने इस शहर में वो ठोकरें खाई हैं कि अब
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
मिरी आदत मुझे पागल नहीं होने देती
तुम्हारे वस्ल का जिस दिन कोई इम्कान होता है