जो खो गया है कहीं ज़िंदगी के मेले में
कभी कभी उसे आँसू निकल के देखते हैं
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वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
मैं ने इस शहर में वो ठोकरें खाई हैं कि अब
मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में
आग तो चारों ही जानिब थी पर अच्छा ये है
शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया
तुम मेरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
रफ़ाक़तों का तवाज़ुन अगर बिगड़ जाए
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ