तुम मिरे साथ हो ये सच तो नहीं है लेकिन
मैं अगर झूट न बोलूँ तो अकेला हो जाऊँ
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वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
मिरी आदत मुझे पागल नहीं होने देती
इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं
मैं इस लिए भी तिरे फ़न की क़द्र करता हूँ
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता
एक ही तीर है तरकश में तो उजलत न करो
न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में
तुम्हारे वस्ल का जिस दिन कोई इम्कान होता है
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था