देर Poetry (page 14)

दरबारी मुग़न्नी

सईदुद्दीन

अलग अलग इकाइयाँ

सईदुद्दीन

किश्त-ए-दयार-ए-सुब्ह से तारे उगाऊँ मैं

सईद शरीक़

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा

सईद राही

फ़सील-ए-ज़ात में दर तो तिरी इनायत है

सईद नक़वी

सफ़र ला सफ़र

सईद अहमद

यही नहीं कि फ़क़त तिरी जुस्तुजू भी मैं

सादिक़ नसीम

उदास उदास सर-ए-साग़र-ओ-सुबू भी मैं

सादिक़ नसीम

अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम

सचिन शालिनी

आँधी का कर ख़याल न तेवर हवा के देख

साबिर ज़ाहिद

अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता

साबिर ज़फ़र

क्यूँ न हम सोच के साँचे में ही ढल कर देखें

सादुल्लाह शाह

ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे

रोहित सोनी ‘ताबिश’

एक रोते हुए आदमी को देख कर

रियाज़ लतीफ़

'रियाज़' आने में है उन के अभी देर

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा

रियाज़ ख़ैराबादी

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

तौबा का पास रिंद-ए-मय-आशाम हो चुका

रिन्द लखनवी

मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी

रिन्द लखनवी

ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए

रिन्द लखनवी

दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है

रिन्द लखनवी

यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में

रिफ़अत सेठी

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे

रिफ़अत सरोश

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