दिया Poetry (page 94)

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

आलोक श्रीवास्तव

मंज़िल पे ध्यान हम ने ज़रा भी अगर दिया

आलोक श्रीवास्तव

वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे

आल-ए-अहमद सूरूर

तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है

आल-ए-अहमद सूरूर

हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए

आल-ए-अहमद सूरूर

ता-मर्ग मुझ से तर्क न होगी कभी नमाज़

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं

आग़ा अकबराबादी

मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब

आग़ा अकबराबादी

दिल में तिरे ऐ निगार क्या है

आग़ा अकबराबादी

चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर

आफ़ताब राईस पानीपती

बाबा गाँधी

आफ़ताब राईस पानीपती

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

लिबास

आदिल रज़ा मंसूरी

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन

ए जी जोश

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