दोस्त Poetry (page 20)

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

ग़ालिब

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है

ग़ालिब

क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए

ग़ालिब

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

ये जो दुश्मन ग़म-ए-निहानी है

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

मेहनत-ओ-दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म और अलम ये रात दिन

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

फिर कभी ये ख़ता नहीं करना

फ़िरदौस गयावी

ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों

फ़िराक़ गोरखपुरी

मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

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