दुनिया Poetry (page 102)

जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी

अफ़रोज़ आलम

शौक़-ए-वारफ़्ता चला शहर-ए-तमाशा की तरफ़

अफ़ीफ़ सिराज

नज़्म

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब

अदीम हाशमी

सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है

अदीम हाशमी

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

अदीम हाशमी

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

अदीम हाशमी

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

अदीम हाशमी

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था

अदीम हाशमी

प्यार करते रहो

अदील ज़ैदी

तू जो चाहे भी तो सय्याद नहीं होने के

अदील ज़ैदी

ख़ाली दुनिया में गुज़र क्या करते

अदील ज़ैदी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़

अदीब सहारनपुरी

दीप था या तारा क्या जाने

अदा जाफ़री

हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

ज़ब्त कर आह बार बार न कर

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

है आम अज़ल ही से फ़ैज़ान मोहब्बत का

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है मेहरबाँ शायद

अबु मोहम्मद वासिल

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने

अबु मोहम्मद सहर

ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला

अबु मोहम्मद सहर

मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ

आबरू शाह मुबारक

यार रूठा है हम सें मनता नहिं

आबरू शाह मुबारक

क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना

आबरू शाह मुबारक

मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन

आबरू शाह मुबारक

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