अंतर Poetry (page 6)

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है

ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

जोर्ज पेश शोर

एक आम वाक़िआ'

गीताञ्जलि राय

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं

फरीहा नक़वी

पहले तो ज़रा सा हट के देखा

फ़रहत एहसास

कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए

फ़राग़ रोहवी

जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं

फ़ानी बदायुनी

लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं

फ़ानी बदायुनी

ख़ुशा ज़मानत-ए-ग़म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वहीं हैं दिल के क़राइन तमाम कहते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किस क़दर मसअला-ए-शाम-ओ-सहर बदला है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थे

एहसान दानिश

कराची का क़ब्रिस्तान

दिलावर फ़िगार

दोनों में कितना फ़र्क़ मगर दोनों का हासिल तन्हाई

दीप्ति मिश्रा

मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था

बुशरा एजाज़

मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था

बुशरा एजाज़

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ख़्वाहिशों से वलवलों से दूर रहना चाहिए

भारत भूषण पन्त

इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को

भारत भूषण पन्त

शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था

बेख़ुद देहलवी

क्या ये भी मैं बतला दूँ तू कौन है मैं क्या हूँ

बहज़ाद लखनवी

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