अंतर Poetry (page 5)

समझने वाला मिरा मर्तबा समझता है

इनआम आज़मी

ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ

इम्दाद इमाम असर

मेरे सर में जो रात चक्कर था

इम्दाद इमाम असर

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ

इफ़्तिख़ार मुग़ल

कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने

इफ़्तिख़ार मुग़ल

ये बच्चा किस का बच्चा है

इब्न-ए-इंशा

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा

हीरानंद सोज़

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

ताबाँ जो नूर-ए-हुस्न ब-सिमा-ए-इश्क़ है

हसरत मोहानी

जो मेरे दश्त-ए-जुनूँ में था फ़र्क़-ए-रू-ए-बहार

हसन नईम

जो ग़म के शो'लों से बुझ गए थे हम उन के दाग़ों का हार लाए

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

उस दिन

हारिस ख़लीक़

नाज़-ओ-अदा है तुझ से दिल-आराम के लिए

हैदर अली आतिश

कूचा-ए-दिलबर में मैं बुलबुल चमन में मस्त है

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

मिरे बुत-ख़ाने से हो कर चला जा काबे को ज़ाहिद

हफ़ीज़ जौनपुरी

यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन की ये ज़िद कि मिरे घर में न आए कोई

हफ़ीज़ जौनपुरी

मुशीर

हबीब जालिब

बढ़ा दी इक नज़र में तू ने क्या तौक़ीर पत्थर की

हबीब मूसवी

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा

गोपालदास नीरज

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ था

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

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