अंतर Poetry (page 3)

बात फाँसी के दिन की नहीं

शारिक़ कैफ़ी

होने से मिरे फ़र्क़ ही पड़ता था भला क्या

शारिक़ कैफ़ी

किसी के वादा-ए-फ़र्दा में गुम है इंतिज़ार अब भी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

तिलिस्म है कि तमाशा है काएनात उस की

शमीम हनफ़ी

तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में

शकील जमाली

मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में

शकील बदायुनी

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा

शकील बदायुनी

बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अब भी वही दिन रात हैं लेकिन फ़र्क़ ये है

शहज़ाद अहमद

वैसे तो इक दूसरे की सब सुनते हैं

शहज़ाद अहमद

शहर का शहर अगर आए भी समझाने को

शहज़ाद अहमद

पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने

शहज़ाद अहमद

फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया

शहराम सर्मदी

अभी मैं ये सोच ही रहा था

शहराम सर्मदी

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है

शहराम सर्मदी

ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच

शाहिद ज़की

ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख

शाहिद कमाल

जो इस चमन में ये गुल सर्व-ओ-यासमन के हैं

शाहिद कमाल

दवाम

शहाब जाफ़री

जब कि ले ज़ुल्फ़ तिरी मुसहफ़-ए-रुख़ का बोसा

शाह नसीर

वाँ कमर बाँधे हैं मिज़्गाँ क़त्ल पर दोनों तरफ़

शाह नसीर

मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल

शाह नसीर

इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में

शाह नसीर

गले लिपटे हैं वो बिजली के डर से

शाद लखनवी

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

मेरे प्यार का क़िस्सा तो हर बस्ती में मशहूर है चाँद

शबनम रूमानी

इक निगाह-ए-बेरुख़ी से ग़र्क़ होते ज़ाइक़े

सरवत मुख़तार

मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं

सरफ़राज़ शाहिद

इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे

सरफ़राज़ शाहिद

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