तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
तुम्हारे बा'द किसी पे ख़फ़ा नहीं हुए हम
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
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कुछ लोग हैं जो झेल रहे हैं मुसीबतें
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
कितने अख़बार-फ़रोशों को सहाफ़ी लिक्खा
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या
चाहत की लौ को मद्धम कर देता है