कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
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अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
सारे भूले बिसरों की याद आती है
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई