अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
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अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
उल्टे सीधे सपने पाले बैठे हैं
किसी का साथ मियाँ जी सदा नहीं रहा है
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में