हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
हर संदूक़ में तेरे कपड़े निकलेंगे
Javed Akhtar
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झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है
इक बीमार वसीयत करने वाला है
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या
उम्र का एक और साल गया
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा