इक बीमार वसीयत करने वाला है
रिश्ते नाते जीभ निकाले बैठे हैं
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अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
कहानी में छोटा सा किरदार है
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं