रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
हर साज़िश के पीछे अपने निकलेंगे
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
झूट सच्चाई का हिस्सा हो गया
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
कहानी में छोटा सा किरदार है
दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
तुम शुजाअ'त के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए
सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई