मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
अपने बच्चों की तरफ़ देख के डर जाते हैं
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इक बीमार वसीयत करने वाला है
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है
इक बीमार वसिय्यत करने वाला है
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा