लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
इश्क़ में इतना ख़सारा है तो घर जाते हैं
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खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
झूट सच्चाई का हिस्सा हो गया
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं