मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(622) Peoples Rate This
अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
कुछ लोग हैं जो झेल रहे हैं मुसीबतें
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई