अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे
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दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
झूट सच्चाई का हिस्सा हो गया
कहानी में छोटा सा किरदार है
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज