झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
सच को जब चाहो झुठलाया जा सकता है
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(555) Peoples Rate This
किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
सफ़र से लौट जाना चाहता है
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है