अहंकार Poetry (page 6)

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

वतन

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

उलझाओ का मज़ा भी तिरी बात ही में था

अज़ीज़ क़ैसी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

एक ही शहर में रहते बस्ते काले कोसों दूर रहा

अज़ीज़ हामिद मदनी

सँभल के चलने का सारा ग़ुरूर टूट गया

अज़हर इनायती

वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए

अज़हर इनायती

शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की

अज़हर इनायती

ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा

अय्यूब साबिर

पहला जश्न-ए-आज़ादी

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज

असरार-उल-हक़ मजाज़

इस को ग़ुरूर-ए-इश्क़ ने क्या क्या बना दिया

अशोक साहनी

अब इस से पहले कि दुनिया से मैं गुज़र जाऊँ

अशोक साहिल

शायद मिरी निगाह में कोई शिगाफ़ था

अशअर नजमी

तिरा ग़ुरूर झुक के जब मिला मिरे वजूद से

अशहर हाशमी

घरौंदे

असग़र मेहदी होश

यूँ दूर दूर दिल से हो हो के दिल-नशीं भी

आरज़ू लखनवी

दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया

आरज़ू लखनवी

मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था

अरशदुल क़ादरी

कहीं तो फेंक ही देंगे ये बार साँसों का

अरशद महमूद अरशद

तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है

अरशद अली ख़ान क़लक़

बशर के फ़ैज़-ए-सोहबत से लियाक़त आ ही जाती है

अरशद अली ख़ान क़लक़

एहसास-ए-हुस्न बन के नज़र में समा गए

अर्श मलसियानी

आग ही आग है गुलशन ये कोई क्या जाने

अर्श मलसियानी

तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,

आरिफ़ इशतियाक़

मेरा बेटा तो है ग़ुरूर मिरा

आराधना प्रसाद

टूटा तिलिस्म-ए-वक़्त तो क्या देखता हूँ मैं

अनवर शऊर

धूप छाँव ज़ेहनों का आसरा नहीं रखते

अंजुम अज़ीमाबादी

बाग़ में रह के बहारों को निभाना होगा

अंजुम अंसारी

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम

आमिर उस्मानी

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