अधिकार Poetry (page 24)

नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा

आबरू शाह मुबारक

रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का

आबरू शाह मुबारक

निपट ये माजरा यारो कड़ा है

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये

आबरू शाह मुबारक

ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली

आबरू शाह मुबारक

गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे

आबरू शाह मुबारक

देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं

आबरू शाह मुबारक

नुमायाँ जब वो अपने ज़ेहन की तस्वीर करता है

अबरार किरतपुरी

लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं

आबिद मुनावरी

जो अपने आप को सब कुछ समझ ले

आबिद अख़्तर

जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है

अब्दुस्समद ’तपिश’

अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख

अब्दुस्समद ’तपिश’

अगर तुम रोक दो इज़हार-ए-लाचारी करूँगा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी

अब्दुर्रहीम नश्तर

इक मुसलसल जंग थी ख़ुद से कि हम ज़िंदा हैं आज

अब्दुल्लाह कमाल

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

न अदा मुझ से हुआ उस सितम-ईजाद का हक़

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे

अब्दुल मन्नान तरज़ी

दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा

अब्दुल हमीद अदम

मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ

अब्दुल हमीद अदम

दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा

अब्दुल हमीद अदम

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-दिलबरी सिमट आ निगाह-ए-मजाज़ में

अब्दुल अलीम आसि

मिरी निगाहों पे जिस ने शाम ओ सहर की रानाइयाँ लिखी हैं

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

हसरत-ए-दीद नहीं ज़ौक़-ए-तमाशा भी नहीं

अब्दुल अहद साज़

आज फिर शब का हवाला तिरी जानिब ठहरे

अब्दुल अहद साज़

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