हुसैन Poetry (page 4)

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ

इब्राहीम होश

कभी वफ़ूर-ए-तमन्ना कभी मलामत ने

हुसैन आबिद

साए चमक रहे थे सियासत की बात थी

हिमायत अली शाएर

वहम-ओ-गुमाँ में भी कहाँ ये इंक़िलाब था

हयात लखनवी

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

गई रुतों को भी याद रखना नई रुतों के भी बाब पढ़ना

हसन रिज़वी

तय मुझ से ज़िंदगी का कहाँ फ़ासला हुआ

हसन निज़ामी

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

कुछ अजीब आलम है होश है न मस्ती है

हसन आबिद

ग़म-ज़दा ज़िंदगी रही न रही

हरी मेहता

वो पेच-ओ-ख़म जहाँ की हर इक रहगुज़र में है

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

वो कम-सिनी में भी 'अख़्गर' हसीन था लेकिन

हनीफ़ अख़गर

हसीन सूरत हमें हमेशा हसीं ही मालूम क्यूँ न होती

हनीफ़ अख़गर

इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ

हैदर अली आतिश

कभी कभी हमें दुनिया हसीन लगती थी

हफ़ीज़ मेरठी

लहू से अपने ज़मीं लाला-ज़ार देखते थे

हफ़ीज़ मेरठी

यूँ तो हसीन अक्सर होते हैं शान वाले

हफ़ीज़ जौनपुरी

इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके

हफ़ीज़ जौनपुरी

तराना-ए-पाकिस्तान

हफ़ीज़ जालंधरी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

तख़्लीक़

गुलज़ार

चम्पई धूप

गुलज़ार

शादाँ न हो गर मुझ पे कड़ा वक़्त पड़ा है

गोपाल मित्तल

मुझ को ग़रीब और क़रज़-दार देख कर

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

गंदुम की बालियाँ

ग़ज़नफ़र

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके

फ़िज़ा कौसरी

बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

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