हसीन सूरत हमें हमेशा हसीं ही मालूम क्यूँ न होती
हसीन अंदाज़-ए-दिल-नवाज़ी हसीन-तर नाज़ बरहमी का
Wasi Shah
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तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो
तुम्हारी आँखों की गर्दिशों में बड़ी मुरव्वत है हम ने माना
इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा
हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमार
इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम
तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो
इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए
अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
शामिल हुए हैं बज़्म में मिस्ल-ए-चराग़ हम
इज़हार पे भारी है ख़मोशी का तकल्लुम
देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग
कोई साग़र पे साग़र पी रहा है कोई तिश्ना है