हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
हर पाँव में ज़ंजीर है मैं देख रहा हूँ
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(705) Peoples Rate This
अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
याद-ए-फ़रोग़-ए-दस्त-ए-हिनाई न पूछिए
तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो
साज़ में सोज़ जब नहीं आता
देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग
इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा
जो कुशूद-ए-कार-ए-तिलिस्म है वो फ़क़त हमारा ही इस्म है
इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया
ये सानेहा भी बड़ा अजब है कि अपने ऐवान-ए-रंग-ओ-बू में
लोग मिलने को चले आते हैं दीवाने से
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया