लोग मिलने को चले आते हैं दीवाने से
शहर का एक तअल्लुक़ तो है वीराने से
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Gulzar
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किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'
आइने में है फ़क़त आप का अक्स
कुश्ता-ए-ज़बत-ए-फुग़ाँ नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा
जो है ताज़गी मिरी ज़ात में वही ज़िक्र-ओ-फ़िक्र-ए-चमन में है
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
पल-भर न बिजलियों के मुक़ाबिल ठहर सके
देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
साज़ में सोज़ जब नहीं आता
हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो
इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया