देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
अपने दीवाने को इक पत्थर तो मारे जाइए
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अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
अपनी नज़रों को भी दीवार समझता होगा
इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम
याद-ए-फ़रोग़-ए-दस्त-ए-हिनाई न पूछिए
कोई साग़र पे साग़र पी रहा है कोई तिश्ना है
आइने में है फ़क़त आप का अक्स
किसी के जौर-ए-मुसलसल का फ़ैज़ है 'अख़्गर'
आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार के
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया
पल-भर न बिजलियों के मुक़ाबिल ठहर सके
जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया
ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे