आइने में है फ़क़त आप का अक्स
आइना आप की सूरत तो नहीं
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जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है
तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो
वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया
इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम
अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
बज़्म को रंग-ए-सुख़न मैं ने दिया है 'अख़्गर'
इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
इज़हार पे भारी है ख़मोशी का तकल्लुम
कोई साग़र पे साग़र पी रहा है कोई तिश्ना है
फ़ुक़दान-ए-उरूज-ए-रसन-ओ-दार नहीं है