जीवन Poetry (page 18)

हवा के होंट खुलें साअत-ए-कलाम तो आए

ग़ालिब अयाज़

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है

ग़ालिब

हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं

गौहर होशियारपुरी

ये नहीं कसरत-ए-आलाम से जल जाते हैं

फ़ितरत अंसारी

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

क्या जानिए मौत पहले क्या थी

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी की बज़्म-ए-तरब में हयात बटती थी

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात

फ़िगार उन्नावी

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