क्या जानिए मौत पहले क्या थी
अब मेरी हयात हो गई है
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तिरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
जिस तरह रगों में ख़ून-ए-सालेह हो रवाँ
ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
इस दौर में ज़िंदगी बशर की
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम