कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
गाते क़दमों की गुनगुनाहट तो सुनो
सावन लहरा है मद में डूबा हुआ रूप
रस की बूँदों की झमझमाहट तो सुनो
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क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
मौत का भी इलाज हो शायद
क्या जानिए मौत पहले क्या थी
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
पाते जाना है और न खोते जाना
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
जुगनू
अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की