किस प्यार से होती है ख़फ़ा बच्चे से
कुछ तेवरी चढ़ाए हुए मुँह फेरे हुए
इस रूठने पर प्रेम का संसार निसार
कहती है कि जा तुझ से नहीं बोलेंगे
Gulzar
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ
अफ़्लाक पे जब परचम-ए-शब लहराया
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
तेरे आने की क्या उमीद मगर
छलक के कम न हो ऐसी कोई शराब नहीं
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो