देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
आदमी को आदमी दरकार है
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ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
कोई आया न आएगा लेकिन
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
'ईसा' के नफ़्स में भी ये एजाज़ नहीं
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया
सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
अमृत वो हलाहल को बना देती है
इश्क़ अब भी है वो महरम-ए-बे-गाना-नुमा
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं