सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
पानी में भीगते कँवल को देखा
बीती होंगी सुहाग रातें कितनी
लेकिन है आज तक कँवारा नाता
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
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Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
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ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है
जिस तरह रगों में ख़ून-ए-सालेह हो रवाँ
ख़ुद मुझ को भी ता-देर ख़बर हो नहीं पाई
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
ज़िंदगी दर्द की कहानी है
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन