ख़राब हो के भी सोचा किए तिरे महजूर
यही कि तेरी नज़र है तिरी नज़र फिर भी
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(795) Peoples Rate This
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है
मौत का भी इलाज हो शायद
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
निखरे बदन का मुस्कुराना है है
फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
तिरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार