निखरे बदन का मुस्कुराना है है
रस के जौबन का गुनगुनाना है है
कानों की लवों का थरथराना कम कम
चेहरे के तिल का जगमगाना है है
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा उसी का है जहाँ में तुझ को
ये शोला-ए-हुस्न जैसे बजता हो सितार
अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है
हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार का पर्दा उठा दिया
शाम-ए-अयादत
रात भी नींद भी कहानी भी
जब किरनें हिमालिया की चोटी गूँधें
लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है
मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है