रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
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आधी रात
उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम
क़तरे अरक़-ए-जिस्म के मोती की लड़ी
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
तेरे आने की क्या उमीद मगर
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
ऐ मअनी-ए-काइनात मुझ में आ जा
वो चेहरा सुता हुआ वो हुस्न-ए-बीमार
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैं